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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं मोहब्बत करता और ज़िंदा रहना भूल चुकी हूँ
और खिलौनों के नए कारोबार का लुत्फ़ उठा रही हूँ
तनवीर अंजुम
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी